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ततु॑रिर्वी॒रो नर्यो॒ विचे॑ताः॒ श्रोता॒ हवं॑ गृण॒त उ॒र्व्यू॑तिः। वसुः॒ शंसो॑ न॒रां का॒रुधा॑या वा॒जी स्तु॒तो वि॒दथे॑ दाति॒ वाज॑म् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taturir vīro naryo vicetāḥ śrotā havaṁ gṛṇata urvyūtiḥ | vasuḥ śaṁso narāṁ kārudhāyā vājī stuto vidathe dāti vājam ||

पद पाठ

ततु॑रिः। वी॒रः। नर्यः॑। विऽचे॑ताः। श्रोता॑। हव॑म्। गृ॒ण॒तः। उ॒र्विऽऊ॑तिः। वसुः॑। शंसः॑। न॒राम्। का॒रुऽधा॑याः। वा॒जी। स्तु॒तः। वि॒दथे॑। दा॒ति॒। वाज॑म् ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:24» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा और प्रजाजनों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (ततुरिः) शत्रुओं का मारनेवाला (वीरः) वीरता आदि गुणों से युक्त (नर्यः) मनुष्यों में श्रेष्ठ (विचेताः) अनेक प्रकार की बुद्धिवाला और (हवम्) प्रशंसा करने योग्य व्यवहार की (गृणतः) प्रशंसा करते हुओं के (श्रोता) विवादविषयक वचनों का सुननेवाला (उर्व्यूतिः) पृथिवी की रक्षा जिससे (नराम्) मनुष्यों का अग्रणी (वसुः) वास कराने और (शंसः) प्रशंसा करनेवाला (कारुधायाः) कारीगर धारण किये जाते जिससे वह (वाजी) विज्ञानवाला (स्तुतः) प्रशंसित हुआ (विदथे) संग्राम में (वाजम्) विज्ञान को (दाति) देता है, उसकी आप लोग सेवा करो ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग जो मनुष्यों में उत्तम, अधिक बल और बुद्धि युक्त, यथार्थ का सुननेवाला तथा संग्राम में युद्धविद्या का देनेवाला है, उस ही का सदा सत्कार करो ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राज्ञा प्रजाजनैश्च किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यस्ततुरिर्वीरो नर्यो विचेता हवं गृणतश्श्रोतोर्व्यूतिर्नरां वसुः शंसः कारुधाया वाजी स्तुतो विदथे वाजं दाति तं यूयं सेवध्वम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ततुरिः) शत्रूणां हिंसकः (वीरः) शौर्यादिगुणोपेतः (नर्यः) नृषु साधुः (विचेताः) विविधप्रज्ञः (श्रोता) विवादानां वचनानां श्रवणकर्त्ता (हवम्) प्रशंसनीयं व्यवहारम् (गृणतः) प्रशंसकान् (उर्व्यूतिः) ऊर्व्याः पृथिव्या ऊती रक्षा येन सः (वसुः) वासयिता (शंसः) प्रशंसकः (नराम्) नराणां नायकः (कारुधायाः) कारवो ध्रियन्ते येन सः (वाजी) विज्ञानवान् (स्तुतः) प्रशंसितः (विदथे) सङ्ग्रामे (दाति) ददाति (वाजम्) विज्ञानम् ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयं यो नरोत्तमोऽधिकबलप्रज्ञो यथार्थस्य श्रोता सङ्ग्रामे युद्धविद्याप्रदोऽस्ति तमेव सदा सत्कुरुत ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो माणसांमध्ये उत्तम, अधिक बलवान व बुद्धिमान असून यथार्थ ऐकणारा व युद्धात युद्धविद्येचा उपयोग करणारा असतो त्याचाच सत्कार करा. ॥ २ ॥